लेखक संपादक दीपक भारतदीप,ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

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>अपरिहार्य कारणों से यह पोस्ट वापस ली गयी है, इसे कुछ समय बाद जारी करने पर विचार किया जा सकता है
दीपक भारतदीप


>सुना है अब सस्ती कर सड़क पर आयेगी
जब महंगी ही थी तब भी
कोई कम कहर बरपातीं थीं
जो सस्तीं में रहम दिखाएंगी
मोटर साइकिल के झुंड ही
रास्ते पर पैदल चलना मुश्किल कर देते
कारों के हार्न ही कान बहरा कर देते
सस्ते होने से कारों के संख्या जो बढेगी
सांस लेना होता जायेगा मुश्किल
महंगाई के इस युग में
जिन्दगी हो गयी है सस्ती आदमी
सस्ती कारो से मुफ्त की हो जायेगी
पहिये तो कार में चार ही होंगे
पर कोई सड़क तो चौड़ी नही हो पायेगी
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>शूटिंग-हूटिंग
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सुरा, सुंदरी और सता के खेल में
अब ऐसे दृश्य सामने आने लगे हैं
कि पता ही नहीं लगता
असल हैं या फिल्म की शूटिंग है
दौलत, शौहरत और ताकत के सहारे
करने वालों का हर कर्म
शानदार अभिनय कहलाये
गरीब के बुरे क्या अच्छे कर्म पर भी
लोग करते हूटिंग है
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दृश्य-अदृश्य
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प्रचार प्रबंधक रचते हैं
शब्दों का ऐसा मायाजाल कि
फिल्मी हीरो
असल जिन्दगी में विलेन होते हुए भी
लोगों के दिल में हीरो होते हैं
अखबार और टीवी में खबरों की
ऐसी चाल रचते हैं गोया कि
हीरो के जग जाहिर काले कारनामे भी
ऐसे प्रस्तुत होते हैं जैसे
कोई काल्पनिक दृश्य हैं
देश , समाज और मर्यादाओं का
कोई लेना-देना नहीं
हीरो से लड़ने वाली
उसे सताने वाली
ऎसी शक्ति है जो अदृश्य है
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प्रचार प्रबंधन
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असली दृश्य नकली लगे
और नकली लगे असली
इसी करामात को
कहते हैं प्रचार प्रबंधन
खलनायक को फिल्म में पीटकर
बनता है नायक
करता है असल जिंदगी में खलनायकी
पर अखबार रहते हैं खामोश
और टीवी पर ऐसे दृश्य आते जैसे
लोग देख रहे हैं स्वपन
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ख्याल हमेशा हकीकत नहीं हुआ करते
अगर ऐसा होता तो
लोग आसमान में ही उड़ते

जमीन की तरफ नजर तक नहीं करते


>उसने कई बार राह चलते हुए
उस लडकी को लव लेटर थमाया
पर लडकी की तरफ से कभी
कोई जवाब नही आया
उसने लव में एक्सपर्ट अपने दोस्त
से जब इस बारे में बात की तो
वह बोला
‘क्या बाबा आदम के जमाने में रहते हो
मोबाइल के जगह लडकी के हाथ में
सडे-गले कागज़ वाला प्रेमपत्र रखते हो
अब तो गिफ्ट देकर प्रेम का इजहार
करने का ज़माना आया’
दोस्त की बात से उसकी समझ
में पूरा माजरा आया

उसने बाजार से खरीदा मोबाइल
फिर जाकर लडकी के हाथ में थमाया
उसे गौर से देखने के बात वह बोली
‘पुराना माडल है समझ में नहीं आया’
बिचारा सकपकाया
फिर निकला बाजार में
भटका इधर उधर
आख़िर ऐक नया माडल समझ में आया
बहुत महंगा था
फिर भी खरीद कर जा पहुंचा उस रास्ते पर
जहाँ से गुजरी वह तो उसे दिखाया
उसने उलट-पुलट कर देखा
फिर पूछा
‘बेटरी फटने वाली तो नहीं
क्या इसे चेक कराया’

उसने ना में गर्दन हिलायी
मुहँ से प्रेम के इजहार के रुप में
प्रथम शब्द की उसकी अभिव्यक्ति
नहीं निकल पायी
लडकी ने वह माडल भी लौटाया
वह तत्काल भागा फिर बाजार की तरफ
बेटरी चेक कराकर लॉट आया
और वापस घर जाती लडकी को दिखाया
लडकी ने अपने पर्स से निकाल कर
उसे दूसरा मोबाइल दिखाया
‘सौरी, तुम्हारे इस प्रेजेंट से पहले ही
यह एकदम नए माडल का मोबाइल
एक दोस्त ही
मेरे पास प्रेजेंट देने आया
मुझे पहली नजर में भाया’
उसके जाते ही लड़का आकाश में
देखकर हताशा में चिल्लाया
‘शाश्वत प्रेम की इतनी गाथाएं सुनता हूँ
पर इस आधुनिक प्रेम का माडल किसने बनाया
जिस पर है मोबाइल के माडल की छाया
यह कभी मेरे समझ में नहीं आया’
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>खिलाडियों का मैदान में खेलना
अब पर्याप्त नहीं
जब तक दर्शकों में हीरो की
छबि अब पहले जैसी व्याप्त नहीं
इसलिए मैदान में लगाओ
किसी हीरो की छाप
फ्लाप होने की तरह बढ़ रहे हीरो
क्रिकेट भी देखते
खिलाडियों को भी
रंगीन चश्में से देखते
फिल्मी दर्शकों को देते सन्देश
उनकी फिल्में भी देखते रहो
क्रिकेट को अभी भी सहते रहो
हिट बनाने का यह नया फार्मूला है
फ्लाप से जोड़ दो फ्लाप
फिल्म में फ्लॉप होने के भय से
क्रिकेट के मैदान में जाते हीरो
रैंप पर कमर नचाते क्रिकेट खिलाड़ी
मैदान में बनाते जीरो
इसलिए फिल्म और क्रिकेट
मिलाकर परोसा जा रहा है पब्लिक के सामें
भले ही दोनों का आपस में कोई नाता नहीं